
गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
खुशबू में वे रहे हैं,
कहीं वे नहीं गए;
उनकी कृपा में रमके,
वायु बनके बह रहे!
गुल में हैं पात बनके,
फूल फल वे ही बने; सुषमा सजाए वे सुहाये, सुषुम्ना सुधे!
अहसास औ ऐश्वर्य लखे, उनके वे रहे;
रह जग में जगे सुलझे रहे, योग रस पगे!
यमुना की तरह बहके,
सरल सलिल वे बने;
पी के गरल धरा के,
धाम अपना हिय किए!
सेवा किए वे विश्व,
हित थे सबका वे सधे; साहित्य रचे ‘मधु’ वे बने, ध्यान प्रभु धरे!