
वंदना घनश्याला
हुआ न क़ोई दूजा इस धरा पर
जिसने बदला न लिया हो इस धरा पर
मेरे भारत की अंतर्मन की पीड़ा को जब न मिला ठिकाना
तब तब तूने ही हमें पहचाना!
होंसलों को दी उड़ान अब बस था उड़ जाना
क्रोध को अब कैसे कम कर जाना
यह नहीं जान पाएगा कभी जमाना
हुआ न क़ोई दूजा इस धरा पर
जिसने बदला न लिया हो इस धरा पर
भीतर धधक रही थी जब ज्वाला, तब कौन था साथ हमारे?
दुखों को गिन गिन कर, बना रहा था प्लान सारे
सिंदूर का बदला लेने डटा था साथ हमारे
शूल बन कर खड़ा था दुश्मन के लिए
गिन गिन कर ले रहा था बदले सारे
हुआ न क़ोई दूजा इस धरा पर
जिसने बदला न लिया हो इस धरा पर