
डॉ. राजेश शर्मा
नई दिल्ली:भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों का इतिहास संघर्षों, युद्धों और आतंकवाद की घटनाओं से भरा रहा है। वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पाकिस्तान को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा और बांग्लादेश का गठन हुआ। वहीं, वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को कई मोर्चों पर करारा जवाब दिया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे:
आज भी पाकिस्तान की भूमि पर सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और उनके सहयोगी संगठन टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) भारत की सुरक्षा के लिए स्थायी खतरे बने हुए हैं। इन संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से लगातार समर्थन मिलता रहा है, जो क्षेत्रीय शांति व स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती है।
पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता:
वर्तमान में पाकिस्तान आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य नेतृत्व में अविश्वास जैसे आंतरिक संकटों से गुजर रहा है। जनरल असीम मुनीर जैसे शीर्ष अधिकारी भी कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में दिख रहे हैं, जिससे पाकिस्तान के स्थायित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं।
भारत की रणनीतिक स्थिति:
भारत अब नीति और नीयत, दोनों स्तरों पर स्पष्ट है। सीमाओं पर सर्जिकल स्ट्राइक, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ मुखरता, और कूटनीतिक दबाव जैसे कदमों से भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि यह नया भारत है—सहनशील, लेकिन कमजोर नहीं।
भारत एक जिम्मेदार लोकतंत्र के रूप में हमेशा शांति की वकालत करता है, लेकिन राष्ट्रीय संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के प्रति कोई समझौता नहीं करेगा। क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शांति के लिए यह आवश्यक है कि पाकिस्तान आतंकवाद और कट्टरपंथ पर नियंत्रण रखे।