
वंदना घनश्याला
तेरे ख्वावों से राहत नहीं मिलती
कौन कहता है हम बेवजह ही निकल लेते हैं?
आंखें खोल कर भी तेरे दीदार कर लेते हैं
लोग तो नींद में सपने देखते हैं
हम खुली आँखों से भी तुम्हें देख लेते हैं
पलकों पर ताले लगाकर छोड़ देते हैं
तू मिले न मिले हम आँखें ही कब बंद करते हैं??
आंखें खोल कर भी तेरे दीदार कर लेते हैं
गुलाबी सुबह में पिंक साड़ी में जब देख लेते हैं
दुनिया सोई रहती तब, हम तुम्हें आँखों में बसा लेते हैं
फिर चाहे नींद आए ना आए हम तो बिन सोए भी रह लेते हैं
नींद के साये आ कर भी किनारा कर लेते हैं
तेरे ख्वावों से राहत नहीं मिलती
कौन कहता है हम बेवजह ही निकल लेते हैं?
आंखें खोल कर भी तेरे दीदार कर लेते हैं