
-प्रताप सिंह पटियाल-
पाकिस्तान के हुक्मरानों तथा पाक सियासत के कद्दावर भुट्टो परिवार को भारत की मुखाल्फत का नजरिया अपने पुरखों से विरासत में मिला है। साबिक पाक वजीरे खारजा बिलावल भुट्टो के परनाना ‘शाहनवाज भुट्टो’ भारतीय जूनागढ़ रियासत के दीवान थे। भारत विभाजन के वक्त जूनागढ़ के नवाब ‘महाबत खान’ को जूनागढ़ रियासत का पाकिस्तान में विलय का मश्विरा शाहनवाज ने ही दिया था। हालांकि शाहनवाज का वो बगावती मश्विरा परवान नहीं चढ़ा। नतीजतन शाहनवाज तथा महाबत खान दोनों पाकिस्तान भाग गए। शाहनवाज के झांसे में आकर पाकिस्तान गए महाबत खान की हालत यह थी कि ‘ना खुदा मिला न मिसाले सनम’! शाहनवाज भुट्टो के भारत विरोधी नजरिए को उनकी हिंदू बेगम ‘लखी बाई’ के बेटे ‘जुल्फिकार अली भुट्टो’ ने बसूबी आगे बढ़ाया। हमेशा कश्मीर को अपनी सियासत का मरकज बनाने वाले भुट्टो ने सन् 1963 में पाक विदेश मंत्री बनते ही कश्मीर हथियाने की वकालत शुरू कर दी थी। कश्मीर में भारत के खिलाफ विद्रोह भडक़ाने के लिए पाक सेना ने ‘आपरेशन जिब्राल्टर’ मंसूबाबंदी को अंजाम देकर सन् 1965 में पाक सैनिकों को सिविल लिबास में घुसपैठ कराई। उस जिब्राल्टर मंसूबे के मास्टरमाईंड जुल्फिकार भुट्टो ही थे। भुट्टो के जहन में कश्मीर हथियाने का खुमार इस कदर हावी था कि जिब्राल्टर मंसूबे के साथ एक और खुफिया मिशन का नाम भुट्टो ने अपनी ईरान के कुर्द वंश की बेगम ‘नुसरत भुट्टो’ के नाम पर ‘आपरेशन नुसरत’ रख दिया था।
हिमाचल के शूरवीर कैप्टन ‘चंद्र नारायण सिंह’ ‘महावीर चक्र’ ने पुंछ सेक्टर में जिब्राल्टर मंसूबे को बेनकाब करके पांच अगस्त 1965 को अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। भारतीय सेना ने पलटवार करके सियालकोट पर कब्जा करके जब जिब्राल्टर को नाकाम किया तो शिकस्त से बौखला कर भुट्टो जंगबंदी के लिए 22 सितंबर 1965 को ‘अक्वाम-ए-मुत्तहिदा’ की ‘सलामती कौंसिल’ में अश्क बहाने लगे। भुट्टो ने ऐलान किया था कि पाकिस्तान हजार वर्ष तक भारत के खिलाफ जंग लड़ेगा। लेकिन इसे इत्तेफाक कहें या हिंदोस्तान के हुक्मरानों की दरियादिली, भुट्टो परिवार का ताल्लुक पाक के सिंध प्रांत से है। सन् 1971 की जंग में कर्नल ‘भवानी सिंह’ ‘महावीर चक्र’ ने सेना की ‘10 पैरा कमांडो’ के नेतृत्व में सिंध के ‘चाचरो’ पर कब्जा कर लिया था। यदि भारत की तत्कालीन हुकूमत इच्छाशक्ति दिखाती तो हमारे राष्ट्रगान में जिस ‘सिंध’ का उल्लेख होता है वो सिंध दोबारा भारत में होता। दो जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी उस पल की चश्मदीद बनी जब 1971 की जंग में शर्मनाक शिकस्त के बाद पाक राष्ट्रपति भुट्टो अमन का पैरोकार बनकर नब्बे हजार से अधिक पाक युद्धबंदियों की रिहाई के लिए शिमला में तशरीफ लाए थे। पाक जरनैल ‘जिया उल हक’ की दौरे हुकूमत में चार अपै्रल 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को तख्ता-ए-दार पर चढ़ा दिया था। जुल्फिकार के छोटे बेटे का नाम भी शाहनवाज ही था। शाहनवाज का 18 जुलाई 1985 को फ्रांस के नीस में कत्ल कर दिया गया था। मरहूम भुट्टो की कश्मीर हथियाने की हसरत व भारत विरोधी विरासत को उनके बेटी ‘बेनजीर भुट्टो’ ने बखूबी आगे बढ़ाया। 1988 में बेनजीर पाकिस्तान की वजीरे आजम बनी। 13 मार्च 1990 को बेनजीर पीओके में तशरीफ ले गई तथा आवाम से मुखातिब होकर अपने वालिद की उसी तहरीर को दोहराया कि कश्मीर की आजादी के लिए पाकिस्तान हजार वर्ष तक जंग जारी रखेगा। दौराने तकरीर में बेनजीर ने कश्मीर की आजादी के नारे लगाकर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल ‘जगमोहन मल्होत्रा’ के खिलाफ मखसूस अंदाज में गैर जिम्मेदाराना व धमकी भरी टिप्पणी करके सुर्खियां बटोरी थीं। राज्यपाल जगमोहन पर मोहतरमा के जहर उगलते उन अभद्र अल्फाज को भारतीय चैनलों पर बैन कर दिया गया था।
बेनजीर ने जनरल ‘मिर्जा असलम बेग’ को मश्विरा दिया था कि पाक वायुसेना को भारत के परमाणु ठिकानों पर हमले के लिए तैयार रहना चाहिए। अगस्त 1990 में पाक सदर ‘गुलाम इशाक खान’ ने बेनजीर की हुकूमत को बर्खास्त कर दिया था। अक्तूबर 1993 में दोबारा वजीरे आजम बनते ही बेनजीर ने अपने भाई ‘मुर्तजा भुट्टो’ को आतंकी वारदातों के इल्जाम में सलाखों के पीछे भेजा। 20 सितंबर 1996 को मुर्तजा भुट्टो को एक मुठभेड़ में हलाक कर दिया गया। बाद में मुर्तजा के कत्ल की तफ्तीश करने वाले पुलिस अधिकारी का भी कत्ल कर दिया गया था। ‘बलूच रेजिमेंट’ के जरनैल ‘जहीरुल इस्लाम अब्बासी’ तथा ‘ब्रिगेडियर मुस्तानसिर बिल्ला’ द्वारा ‘ऑपरेशन खलीफा’ के तहत सन् 1995 में बेनजीर के तख्तापलट की कोशिश नाकाम रही थी। जहीरुल इस्लाम तथा मुस्तानसिर बिल्ला को सलाखों के पीछे भेज दिया गया। लेकिन 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में एक आत्मघाती हमले में बेनजीर भुट्टो को हलाक कर दिया गया था। अब भुट्टो खानदान के भारत विरोधी नुक्ता-ए-नजर को बेनजीर के बेटे ‘बिलावल भुट्टो’ आगे बढ़ा रहे हंै। बिलावल ने सन् 2022 में न्यूयार्क में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री के बारे में अमर्यादित टिप्पणी की थी जिसका भारत ने पुरजोर विरोध किया था। पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा ‘सिंधु जल संधि’ रद्द करने पर बिलावल ने कहा कि ‘या तो सिंधु नदी में हमारा पानी बहेगा या उनका खून बहेगा’। बेशक भुट्टो कुनबे का सियासी सफर बेहद दर्दनाक रहा है, मगर भुट्टो खानदान की सियासत कश्मीर व भारत विरोध की तवाफ करती रही है। बहरहाल हमें गर्व है कि भारतीय सेना ने कश्मीर हथियाने के लिए पाकिस्तान के सभी मंसूबों को हमेशा ध्वस्त किया है। अलबत्ता अमन, सुकून व मुजाकरात का दौर गुजर चुका है। सेना पीओके पर पेशकदमी के इंतजार में है। बशर्ते सियासी नेतृत्व इच्छाशक्ति दिखाए। कश्मीर पर पाकिस्तान रोज-ए-महशर तक अश्क बहाकर विधवा विलाप ही करता रहेगा। कश्मीर भारत का है और सदा रहेगा। इसे छीनने की हर कोशिश भारतीय सेना ने नाकाम की है।