
संजय एम तराणेकर
आज अपने कहाँ रह गए प्रिय,
जिनके बिन न रहा जाए जिय।
यह रिश्ते भी अजब निराले हैं,
सब चालाक एवं भोले-भाले हैं।
तुम क्यों ऐसे मुँह सिले रहते हो,
मुँह खोलों क्या-क्या कहते हो।
आज अपने कहाँ रह गए प्रिय,
जिनके बिन न रहा जाए जिय।
क्यों न आए हमारी खुशियों में,
तुम्हारी खुशियों में ही आते रहें।
अपना धन व समय जाया करें,
कौनसा प्यार जो महसूस करें।
आज अपने कहाँ रह गए प्रिय,
जिनके बिन न रहा जाए जिय।
आयोजन में न आना हैं बहाना,
दूर से ही प्यार हैं तुम्हें दिखाना।
अपनत्व तो लड़खड़ाकर गिरा,
जो बचा स्नेह टुकड़े हुआ सिरा।