
-प्रमोद भार्गव-
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में अपने बोकस हथियारों का हश्र देखने के बाद बौखलाए चीन ने युद्धविराम से पहले अपनी आत्मतुष्टि के लिए अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थलों को चीनी नाम दे दिए। इनमें रहवासी बस्तियों समेत नदियां और पहाड़ शामिल हैं। चीन अरुणाचल में ऐसी हरकतें पहले भी कर चुका है। कुंठित तानाशाह अपनी विचलित मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए अकसर ऐसी ही हरकतें करते हैं। चीन की यह कुंठा इसलिए जागृत हुई, क्योंकि भारतीय वायुसेना ने जब पाकिस्तान के आतंकी ठिकाने नेस्तनाबूद करने के लिए ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलें दागीं तो चीन द्वारा पाकिस्तान को दी गईं प्रतिरक्षा प्रणाली खोखली साबित हुई। इससे चीन के घटिया हथियारों की पोल डिजिटल साक्ष्यों के साथ पूरी दुनिया के सामने सार्वजनिक हो गई। परिणामस्वरूप उसके आयुध बाजार को जबरदस्त झटका लग गया। मिसाइल निर्माण करने वाली चीनी कंपनियों के शेयर जमीन पर आ गए। चीन की यह बचकानी हरकत है कि जब भी भारत कोई बड़ा काम करता है, तो चीन पूर्वोत्तर क्षेत्र के इस भारतीय प्रांत में ग्रामों, नगरों, नदियों और पहाड़ों के नाम चीनी भाषा मंदारिन में रख देता है और फिर बाकायदा आधिकारिक बयान अपनी सरकारी वेबसाइट ‘ग्लोबल टाइम्स’ पर कर देता है। चीन के प्रपंच की यह आदत आभासी या छद्म युद्ध छेडऩे जैसी बार-बार सामने आती रही है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आता है।
इस हरकत के सामने आने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा है कि ‘हमने देखा है कि चीन ने अरुणाचल के कुछ स्थलों के नाम बदलने का खोखला एवं निरर्थक काम किया है। अपने पारंपरिक सैद्धांतिक नीति को जारी रखते हुए हम इस तरह की कोशिशों को सिरे से खारिज करते हैं। नाम बदलने की थोथी प्रक्रिया से जमीन पर हकीकत नहीं बदल जाती। अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा। चीन ने ऐसी ही हरकत अरुणाचल प्रदेश में तब की थी जब 9 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस प्रदेश की 13000 फीट की ऊंचाई पर निर्मित की गई सेला सुरंग का उद्घाटन करने पहुंचे थे। तब अरुणाचल के 30 स्थानों को नए नाम देने की हरकत की थी। डोकलाम विवाद के बाद से ऐसी हरकतें लगातार सामने आती रही हैं। 2017 में जब दलाई लामा अरुणाचल पहुंचे थे, तब भी चीन ने नाम बदले थे। इन नामों की सूची चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में भी प्रकाशित की जाती है। चीनी नागरिक मामलों का मंत्रालय इन सूचियों को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी डालता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को जंगनान रहता है और इसे दक्षिण तिब्बत के हिस्से के रूप में इस राज्य पर अपना अनैतिक दावा जताता है। जबकि चीन भली-भांति जानता है कि नाम बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। चीन ऐसी हरकत 2017, 2021, 2023, 2024 और अब 2025 में कर रहा है। चीन ये नाम मंदारिन, तिब्बती या फिर पिनयिन भाषाओं में देता है। चीन जब भी भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुतबा स्थापित हो रहा होता है, तब रुतबे को आहत करने की हीनभावना से यह हरकत करता है। भारत ने जब 9-10 सितंबर 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया था, तब इस सम्मेलन की एक बैठक अरुणाचल में भी संपन्न हुई थी। तब भी चीन ने अरुणाचल में खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी हरकत दिखाई थी। इस सम्मेलन में चीन शामिल नहीं हुआ था। चीन ने अरुणाचल क्षेत्र में अवैधानिक रूप से गांव बसाने के भी प्रयास किए हैं। चीन अपने मानचित्रों में भी अरुणाचल को अपना बताने की कोशिश करता रहा है। चीन की ये सब हरकतें उसकी विस्तारवादी नीति की कुटिल एवं नापाक इच्छाएं दर्शाती हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो साफ है, कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी आतंकवाद के विरुद्ध ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया तो चीन और तुर्किये खुले रूप में पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए थे। यही नहीं, चीन ने पाकिस्तान को वायु सुरक्षा प्रणाली और ड्रोण दिए थे।
लेकिन भारतीय मिसाइलों ने सुरक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने ड्रोनों के माध्यम से जो मिसाइलें भारतीय क्षेत्र में दागी, उन्हें वायु सैनिकों द्वारा छोड़ी गई ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलों ने आसमान में ही नाकाम कर दिया था। चीन की पाकिस्तान के पक्ष में सीधी उपस्थिति के चलते भारत ने चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स और सरकारी एजेंसी शिन्हुआ के एक्स खाते भारत में बंद कर दिए हैं। ग्लोबल टाइम्स ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कई मनगढ़ंत खबरें दीं और झूठे दावे भी किए थे। सरकार ने यह कदम ऐसे समय उठाया है, जब हाल ही में भारत सरकार ने पाकिस्तान के कई एक्स हैंडल के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की है। साथ ही भारत ने तुर्किये के साथ भी अनेक व्यापार समझौते तोड़ते हुए पर्यटकों के वहां जाने पर रोक लगा दी। चीन की हमेशा ही कुुटिल निगाह वास्तविक नियंत्रण रेखा को लांघने की भी रही है। चीन ने 15 जून 2020 को लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र गलवान घाटी में सीमा उल्लंघन का प्रयास किया था। जिसके चलते भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें करीब 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। चीन के भी बड़ी संख्या में सैनिक हताहत हुए थे। लंबे समय तक सैन्य गतिरोध बने रहने के बाद चीन नियंत्रण रेखा से पीछे हटने को मजबूर हुआ था। यहां मार खाने के बावजूद चीन का अरुणाचल में हस्तक्षेप का प्रयास निरंतर बना हुआ है। 1962 के युद्ध के समय चीन ने भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में अपने सैनिकों की सबसे बड़ी टुकड़ी तवांग के मार्ग से असम तक पहुंचाई थी। भारत, चीन की इस चालाकी से अच्छी तरह से परिचित है। अतएव पिछले एक दशक में समूचे अरुणाचल प्रदेश में ढांचागत विकास को बहुत तेज किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विकास को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं। चीन के लिए यह विकास और भारत सरकार का दोटूक जवाब परेशानी का सबब बन रहा है। अरुणाचल प्रदेश से लगे सीमाई इलाकों में 63 सडक़ें भारत सरकार बना रही है। इनमें से कई सडक़ंे व पुल तैयार होने के साथ आवागमन के लिए भी खोल दिए गए हैं। नतीजतन भारतीय सैनिकों की सीमा तक पहुंच आसान हो गई है। सनद रहे कि 1962 में सडक़ें नहीं होने के कारण ही भारतीय सेना को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। चीन की घुसपैठ रोकने के लिए तवांग समेत अरुणाचल के अन्य सीमा क्षेत्र में भारत ने अपने सैनिकों की संख्या और हथियारों के जखीरे बढ़ा दिए हैं। इसलिए चीन जिस रास्ते से भी घुसने की कोशिश करता है, उसे सेना तत्काल माकूल जवाब दे देती है। हालांकि चीन की तरफ से भी अपने इलाके में लगातार सडक़ें, पुल और सैनिक अड्ढे बनाए जा रहे हैं।
चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के शिखर क्षेत्र त्सारी चू में गांव बसाने की कोशिश भी हुई थी। तिब्बत के दक्षिणी क्षेत्र जंगनान से जुड़ी नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं किया है। चीन ने दृढ़तापूर्वक कहा है कि जंगनान क्षेत्र (जो कि भारत का अरुणाचल प्रदेश है), है, उसके साथ अरुणाचल प्रदेश के अस्तित्व को भी कोई मान्यता नहीं देता है। मसलन संपूर्ण अरुणाचल को चीन विवादित क्षेत्र मानकर चल रहा है। कुछ साल पहले चीन ने अरुणाचल की वास्तविक सीमा के करीब 4.5 किलोमीटर अंदर घुसकर 101 नए घर बनाकर पूरा एक गांव बसा लिया था। यह गांव अरुणाचल के सुबनसिरी जिले में था। इस गांव के बसाए जाने के रहस्य का खुलासा उपग्रह से ली गईं तस्वीरों से हुआ था। ये तस्वीरें 1 नवंबर 2020 की बताई गई थीं। इनमें यह गांव स्पष्ट दिखाई दे रहा था, जबकि इस समय से एक साल पहले लिए गए उपग्रह चित्रों में यह गांव नहीं था। मसलन गांव इसी समय सीमा के भीतर बसाया गया। साफ है, चीन पड़ोसी देशों की संपत्ति हड़पने की हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।