प्रेम या प्रपंच…..

asiakhabar.com | June 14, 2025 | 5:41 pm IST

वंदना घनश्याला
आज भारत जिस प्रकार तरक्की.. उन्नति की ओर बढ़ रहा है, इसकी उन्नति को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यहाँ के युवा नागरिक मन में न जाने क्या सोच रखते हैंl
आज आवश्यकता है युवा पीढ़ी के मन को खंगालने की और उन्हें सही दिशा पर ले जाने कीl सबसे पहले अपने घर से ही यह कार्य शुरू करना चाहिए युवा पीढ़ी को नैतिक शिक्षा और इससे जुड़े पहलू की जानकारी दी जानी चाहिए
कुछ परिवारों में आपस में बातचीत कम हो पाती है शायद जहां परिवार में सभी सदस्य व्यस्त रहते हैं समय न मिलने के कारण कई कई दिनों तक बातचीत या आपस में विचार विमर्श नहीं हो पाता है
आज आवश्यकता है इसे पूर्ण करने कीl बच्चों के संग बैठिए और बैठकर वार्तालाप करिए उनके मन की बात को भाँपने का प्रयास कीजिए
लड़का या लड़की दोनों को एक जैसी शिक्षा दी जानी चाहिएl चाहे घर के कार्य हों, या बाहर के, दोनों को एक समान सहज रूप से सभी प्रकरणों के बारे में समझाया जाना चाहिएl
बच्चा आपसे इस हद तक खुला हुआ हो कि वह आपको दोस्त मानकर आपसे सारी बातें कर सके l जब बच्चा अपने मन की बात मन में रखकर छोड़ देता है उससे न जाने कितनी कहानियाँ और आगे बन जाती हैं
यदि हो सके तो हर रविवार कहीं मंदिर या कहीं घर में किसी भी जगह पर बच्चों के लिए कुछ रामायण महाभारत जैसी कथाओं का आरंभ होना चाहिएl
उन्हें समझाइए की प्रेम का सच्चा अर्थ क्या है?? प्रेम का अर्थ त्याग है जरूरी नहीं कि हमें हर वस्तु मिल जाए.. तो क्या हम उसके लिए प्रपंच रचना शुरू कर देंगे?? गलत आदतों में पड़कर क्या हम पैसे के पीछे भागना शुरू कर देंगे??
किसी के साथ धोखाधड़ी करके अपने कार्य को सिद्ध करना आरंभ कर देंगे क्या?
शैशव काल से ही बच्चों के मन में अनुशासन व नैतिक शिक्षा के अंकुर हमें उनके मन में अंकुरित करने हैं
अपने बच्चों को हमें ही समझाना होगा कि प्रेम और प्रपंच में क्या अंतर है?? और इसके लिए हमें एक को नहीं सबको मिलकर चलना होगा
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है जो एक बार मन में बैठ गया तो बैठ गया तो उन्हें समझाइए और उनके मन की बात को जानने का प्रयास कीजिए
रामायण महाभारत और और हमारे अन्य धार्मिक ग्रंथो के माध्यम से युवा पीढ़ी को समझाइए और उन्हें बताइए कि किस तरह हमें जीवन में सफल होना है मीरा, राधा न जाने कितने लोगों ने अपने प्रेम के लिए त्याग किया तो क्या उन्होंने उसे प्राप्त करने के लिए प्रपंच रचा??भारतीय नारी हमारे साहित्य की व संस्कृति की पहचान हैl इस इस तरह बेइज्जत मत्त करिएlकहा जाता है
“यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता:”
आज इसे पढ़ कर हर स्त्री जाति शर्मसार होती नजर आ रही है तो क्या हम अपने बच्चों को इस तरह के संस्कार दे रहे हैं??
कोई भी परिवार या समाज अपने नागरिकों को अपने बच्चों को यह शिक्षा नहीं देता है, तो यह चीज इनके दिमाग में आती कहाँ से है??
युवा पीढ़ी के साथ चलिए समझाते चलिए और अच्छे संस्कार दीजिए उनसे बात करिए कि आखिर उनके मन में क्या चलता रहता है?
यदि कुछ भी बच्चे की प्रतिक्रिया अलग लगने लग जाए तो हमें समझ जाना चाहिए कि कुछ ना कुछ नया उनके दिमाग में चल रहा है
आईए हम अपने बच्चों को अपनी प्राचीन परंपरा और संस्कृति से जोड़ेंl यह कार्य प्रेम पूर्वक हो न कि जबरन
फैसला हमारा है हमें उन्हें प्रेम और प्रपंच में अंतर समझाना है या उन्हें इसी प्रकार भटकते रहने पर मजबूर कर देना है


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