
भारत के लिए पाकिस्तान ही सामरिक और आतंकवादी समस्या नहीं है। चीन भी समान चुनौती है। बेशक भारत और चीन आपसी संबंधों को बेहतर बनाने में जुटे हैं। लद्दाख वास्तविक नियंत्रण रेखा वाले युद्ध-क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। अमरीकी टैरिफ दबाव के मद्देनजर चीन भारत के साथ व्यापार को बढ़ाने के पक्ष में है, लेकिन चीन चुपचाप पीठ में छुरा घोंपने वाला देश रहा है। पाकिस्तान के साथ हालिया सैन्य संघर्ष में चीन ने उसे वायु रक्षा प्रणाली, मिसाइलें दीं, ड्रोन भी दिए और सैनिक भी पाकिस्तानी फौज के मुखौटे और लिबास में लड़े। पाकिस्तान हमारे लिए शाश्वत चुनौती है। युद्ध के आसार कभी भी बन सकते हैं। हालांकि भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की सामरिक तैयारियों को ध्वस्त कर दिया है। उसके प्रमुख एयरबेस इतने तबाह कर दिए हैं कि वहां से किसी भी लड़ाकू विमान का उड़ान भरना नामुमकिन है। उन एयरबेस के पुनर्निर्माण के लिए पाकिस्तानी हुकूमत ने निविदाएं सार्वजनिक की हैं। बेशक वह सामरिक तौर पर तैयार रहना चाहता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को कर्ज की किस्त जारी करने से पहले 11 शर्तें तय की हैं, लेकिन उनमें एक भी ऐसी नहीं है, जो युद्ध और आतंकवाद को रोकने वाली हो। बेशक आईएमएफ ने विकास पर किए जाने वाले बजटीय खर्च को लेकर सवाल जरूर किए हैं। बहरहाल समस्या भारतीय सेनाओं के यथाशीघ्र आधुनिकीकरण की है, जिसके लिए रक्षा बजट में 26 फीसदी अतिरिक्त पूंजी के आवंटन की घोषणा की गई है। यह 50,000 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद पर्याप्त नहीं है। बेशक भारत का रक्षा बजट 7.30 लाख करोड़ रुपए से अधिक का हो गया है, लेकिन अब भी वह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 1.9 फीसदी ही है। जो भारत की जरूरतें हैं और सामरिक चुनौतियां हैं, उनके मद्देनजर रक्षा बजट जीडीपी का कमोबेश 2.5 फीसदी के बराबर या उससे अधिक होना चाहिए।
सामरिक तैयारियां 20-25 साला परियोजना नहीं हो सकती। बजट में जो बढ़ोतरी की गई है, उसका अधिकतम हिस्सा महंगे, विदेशी हथियार और उपकरण खरीदने पर ही खर्च हो सकता है, लेकिन भारत को स्वदेशी रक्षा-उत्पादन तुरंत बढ़ाना चाहिए। उसके मद्देनजर रक्षा-क्षेत्र की निजी कंपनियों को आक्रामक समर्थन और सहयोग देकर रक्षा-खरीद को विस्तार देना बेहद जरूरी है। तुलना पाकिस्तान से नहीं, चीन की रक्षा तैयारियों के साथ करनी चाहिए। हमारी वायुसेना के पास बेहद आक्रामक और सटीक निशाने वाले लड़ाकू विमान हैं, लेकिन उनके दस्तों की संख्या 31 है, जबकि स्वीकृत संख्या 42 है। मौजूदा भारत-पाक संघर्ष में निर्णायक भूमिका हवाई हमलों ने ही निभाई। हालांकि एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सेनाएं परंपरागत लड़ाई लड़ती रहीं, लेकिन पाकिस्तान की तबाही हमारे लड़ाकू विमानों और सटीक मिसाइलों ने ही तय की। ब्रह्मोस मिसाइल ने तो रिकॉर्ड कायम किए, लिहाजा आज करीब 20 देश हमसे ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाहते हैं। एस-400, स्वदेशी प्लेटफॉर्म, विमान-रोधी समर और आकाश मिसाइल सिस्टम आदि का प्रदर्शन कमाल का रहा। दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलें आकाश में ही टुकड़ा-टुकड़ा करने में हम सफल रहे। ये हमारे रक्षा शोध और विकास के सफलतम परिणाम साबित हुए, लेकिन सरकार का निवेश और अनुबंध अभी और भी बढ़ाए जाने चाहिए। लड़ाकू विमान राफेल, सुखोई, मिग, मिराज आदि तक ही सीमित नहीं रहने चाहिए। हमें अपने ‘अवाक्स सिस्टम’ को अधिक अपग्रेड करने की जरूरत है। पाकिस्तान के पास चीन के विकसित लड़ाकू विमान भी हैं। बेशक हालिया संघर्ष में पाकिस्तान नाकाम रहा, लेकिन उसके पास सामरिक तैयारी तो है। यह ध्यान रहे।